baccho-ki-Idgaha Ve Aniya Kahaniya :- Munsi Premchand



इदगाह वे अनिया कहानियां:- मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद नाम है एक ऐसी रचनाकार का जो आधार आलोचनाकारों से जूझता रहा बिना किसी शिकन के मुस्कराता हुआ। मुंशी दयानारायण निगम को लिखा इस खत का एक-एक शब्द हिंदी-जगत की इस महान प्रतिभा के अंतर्जगत का खुलासा करता है- “हमारा काम तो केवल मान रहा है, बहुत दिल से झूठ बोलना, बड़े जी-तोड़कर खेलना, अपने को हार से इस जैसे बचाना मानो हम दोनों लोगों की संपत्ति खो देंगे। जोखिम के कारण पटखनी खाने के बाद धूल झाड़कर रुक जाना चाहिए और फिर ताल ठोंककर एंटी-विरोधी से कहना चाहिए कि एक बार फिर, जैसा कि सूरदास कह गए हैं, ‘तुम जीते हम हारे। पर फिर से लड़ेंगे।” और मजे की बात है कि इस काम के लिए इस रचनाकार को ईश्वर की कोई आवश्यकता महसूस नहीं हुई। जैनेंद्र जी को वे लिखते हैं- “तुम आस्तिकता की ओर जा रहे हो-जा नहीं रहे बल्कि पक्के भगत बनते बने जा रहे हो जबकि मैं संशय से नास्तिक बना रहा हूं।” मृत्यु से पहले भी जैनेंद्र जी से उन्होंने कहा था- “लोग ऐसे समय में ईश्वर को याद करते हैं, मुझे भी याद किया जाता है, पर मुझे अभी तक ईश्वर को मुसीबत देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई है। ” 31 जुलाई, सन् 1880 को वाराणसी शहर से चार मील दूर समही गांव में उत्पन्न धनपत राय ही हिंदी-साहित्य जगत् में प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्हें यह नाम दिया था मुंशी दयानारायण निगम ने, जो उनके अधिकार मित्र थे।

असिन : B093Z2L6HR
प्रकाशक : पांडुलिपि प्रकाशन (1 जनवरी 2021); 9582897569
भाषा : हिन्दी
किताबचा : 96 पेज
आइटम का वज़न: 400 g
आयाम: 22 x 14 x 2 सेमी
मूल देश: भारत

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